दो सौ महिलाओं को जोड़ा और पांच से दस लाख कपड़े की थैलियां बनाने की लक्ष्य तय किया
बांसवाड़ा / परतापुर। पति की मौत और कैंसर की बीमारी ये दोनों किसी भी महिला का हौसला तोड़ दे और उसकी जिंदगी में अंधेरा कर दे, लेकिन उसने हार नहीं मानी चुनौतियों का सामना किया, अपनी राह तय की और पांच साल के सफर में अपने परिवार की आजीविका के लिए कपड़े की थैलियां बनाने का जो हुनर अपनाया उसे प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान में योगदान का जरिया बनाकर मानवता की सेवा का जज्बा दिखा रही है।
ये कहानी है वांसवाड़ा जिले के गढ़ी उपखंड के छोटे से गांव वजाखरा मूल की कैंसर पीड़ित साधना उपाध्याय की साधना के जीवन में दुखों के जैसे पहाडू टूटे हैं भगवान न करे किसी के जीवन में ऐसे दुख आएं। वर्ष 2013 में पति की मौत और अगले ही साल खुद कैंसर की शिकार। लेकिन साधना अपने हौसले से कैंसर की जंग लड़ते हुए भी प्रेरणा पुंज बनकर उभरी है साधना पांच साल से कैंसर से पीड़ित है, लेकिन उसने एक दिन भी इससे मायूसी और निराशा का भाव स्वयं पर हावी नहीं होने दिया। उसने मानवता की सेवा का रास्ता अपनाया। अस्पताल में जाकर बच्चों नवजात शिशुओं के लिए वस्त्र भेंट करने और खुद हाथ से हैण्डबैग और खिलौने बनाकर आस पास के पड़ोस के बच्चों को जन्म दिन पर तोहफे के रूप में भेंट करने का काम करती रही है।
रोज दो सौ ठेलिया बनती हे साधना
साधना ने यों तो कपड़े की थैले और थैलियां बनाकर बाजार में बेचने का काम अपनी आजीविका के लिए शुरू किया था लेकिन जब प्लास्टिक मुक्त भारत का अभियान शुरू हुआ तो उसने भी इसमें अपना योगदान देने का फैसला किया। पिछले तील साल में ढाई लाख थैलियां तैयार कर बेची है लेकिन पिछले छह माह में उसने स्वयं का समूह बनाकर आस पास के गांवों की दो सौ महिलाओं को जोड़ा और एक साल में पांच से दस लाख थैले और थैलियां बनाने का लक्ष्य बनाकर उसे पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए। वह स्वयं रोजाना दो सौ थैलियां बना लेती है। इससे महिलाओं को 4 से 5 हजार रुपए प्रतिमाह की आय हो रही है, रोजगार मिला ही है साथ ही अभियान में भी योगदान भी हो रहा है।
विपरीत परिस्थितियों से नहीं घबराएं
उपाध्याय का मत है कि जीवन में विपरीत परिस्थितियों से घवराने एवं मायूस होकर बैठने की बजाय हिम्मत के साथ स्वयं को समाजसेवा, रोजगार आदि से जोड़ते हुए जीवन यापन करना चाहिए। इसी भावना से उसने हालात पर विजय पाई है।
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